Punjab Kesari 2020-02-21

विश्व में बढ़ती भारत और भारतीयता की धमक

आखिर इतिहास कैसे करवट लेता है?- इसका प्रत्यक्ष और हालिया उदाहरण भारत से मीलों दूर यूनाइडेट किंगडम के राजनीतिक घटनाक्रम में मिलता है। ब्रिटेन में प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के बाद वहां के तीसरे और चौथे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति- न केवल भारतीय मूल के है, अपितु वैदिक सनातन संस्कृति का अंश होने पर गौरवांवित भी अनुभव करते है। 47 वर्षीय प्रीति पटेल जहां 2019 से ब्रिटेन में गृह मंत्रालय संभाल रही हैं, तो वही 39 वर्षीय ऋषि सुनाक को गत दिनों ही महत्वपूर्ण वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसके अतिरिक्त, 52 वर्षीय और आगरा में जन्मे आलोक शर्मा भी ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ा रहे है। भले ही ब्रिटेन के वित्त मंत्री ऋषि सुनाक पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार, 11 मार्च को बजट प्रस्तुत करेंगे। किंतु उससे पहले ही ब्रिटेन के महत्वपूर्ण पदों पर भारतवंशियों के विराजमान होने का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखने लगा है। वहां की सरकार ने वीजा नियमों में भारी बदलाव किया है, जिसका सीधा लाभ अन्य लोगों की भांति भारतीयों को भी होगा। ब्रितानी गृहमंत्री प्रीति पटेल ने बुधवार (19 फरवरी) को यूनाइडेट किंगडम की अंक आधारित नई वीजा प्रणाली की घोषणा कर दी, जिसका उद्देश्य भारत सहित शेष विश्व के "सबसे उभरते और सर्वश्रेष्ठ" को ब्रिटेन आने हेतु आकर्षित और सस्ते व अल्प कुशल श्रमिकों की संख्या में कटौती करना है। यह नीति बेक्जिट प्रक्रिया पूरी होने के बाद एक जनवरी 2021 से लागू होगी। पुरानी नीति के अंतर्गत, पहले पूर्वी यूरोपीय देशों को अधिक वरीयता मिलती थी, जिसमें अब व्यापक परिवर्तन आएगा। बकौल प्रीति पटेल, "आज पूरे देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। हम मुक्त गमनागमन को समाप्त कर रहे हैं। अपनी सीमाओं को वापस नियंत्रित कर रहे है।" ब्रिटेन की प्रवासन सलाहकार समिति ने टीयर-2 श्रेणी में पेशेवरों का वेतन 30,000 पाउंड से घटाकर 25,600 पाउंड करने के साथ कौशल स्तर, अंग्रेजी भाषा की जानकारी और नौकरी के लिए अतिरिक्त अंक देने की सिफारिश की है। यूरोपीय संघ के अलग ब्रिटेन में गत वर्ष इसी श्रेणी में 56,241 कुशल भारतीय पेशेवरों को वीजा दिया गया था। ब्रेग्जिट के बाद माना जा रहा है कि यह संख्या और बढ़ेगी। प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन पहले ही स्पष्ट कर चुके है कि वे अल्प-कुशल लोगों का प्रवासन रोकना चाहते हैं और सस्ते श्रम के बदले कौशल, तकनीक और नवाचार को बढ़ावा देंगे ताकि ब्रिटेन को दीर्घकालिक लाभ मिले। आज ब्रिटेन में भारतीयों और भारतीय मूल के नागरिकों की स्थिति क्या है? इसका उत्तर- यूनाइटेड किंगडम के राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग द्वारा 2019 में जारी एक आंकड़े में छिपा है। रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन में चीनी मूल के नागरिकों के बाद भारतीय समूह के लोग स्थानीय युवाओं की तुलना में अधिक धन अर्जित करते है। जबकि बांग्लादेशी और पाकिस्तानी मूल के कर्मचारियों की औसत कमाई सबसे कम है। जहां चीनी कर्मचारी प्रति घंटा करीब 1,350 रुपये कमाते हैं, वही भारतीय कर्मचारी 1152 रुपये प्राप्त करते हैं। जबकि स्थानीय ब्रिटिश युवकों को करीब 1030 रुपये ही मिलते हैं। बांग्लादेशी और पाकिस्तानी युवकों की हर घंटे कमाई क्रमश: करीब 821 रुपये और 855 रुपये है। यह सब एकाएक नहीं हुआ। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब संकट से घिरे इंग्लैंड का पुनर्निर्माण प्रारंभ हुआ, तब कालांतर में भारत- विशेषकर पंजाब से कई लोगों ने उज्जवल भविष्य की खोज में यूरोपीय देशों का रुख किया। बाद में उनकी अगली पीढ़ियों ने अपने परिश्रम, बौद्धिक क्षमता और पारिवारिक मूल्यों के आधार स्थानीय लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित करके विदेश में सम्मानजनक स्थान प्राप्त किया। भिन्न संस्कृति, विचार और जीवनशैली से तारतम्य बनाने में अधिकांश भारतीय इसलिए भी सफल हुए या यूं कहे कि अब भी सफल हो रहे है, क्योंकि वे वैदिक सनातन संस्कृति की जननी भारत से मीलों दूर होकर अपनी मूल जड़ों और परंपराओं से ऊर्जा प्राप्त कर रहे है, जिसमें "वसुधैव कुटुम्बकम्" और "एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति" का चिंतन निहित है। इस बहुलतावादी दर्शन का प्रतिबिंब यूनाइडेट किंगडम के नवनिर्वाचित "चांसलर ऑफ द एक्सचेकर"- अर्थात् वित्तमंत्री ऋषि सुनाक की जीवनशैली और व्यवहार में भी मिलता है। ब्रिटेन में जन्मे और पंजाबी पृष्ठभूमि से आने वाले भारतवंशी ऋषि ने एक साक्षात्कार में कहा था- "मैं जनगणना के समय सदैव ब्रिटिश भारतीय श्रेणी पर निशान लगाता हूं। मैं पूरी तरह से ब्रिटिश हूं, यह मेरा घर और मेरा देश है। किंतु मेरी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत भारतीय है। मेरी पत्नी अक्षता (इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति की सुपुत्री) भी भारतीय है। मैं अपनी हिंदू पहचान पर मुखर हूं। मैं ब्रिटेन में रहते हुए भी गोमांस का सेवन नहीं करता हूं, जो मेरे लिए कभी समस्या भी नहीं बना।" अपनी हिंदू पहचान पर गर्व करने वाले ऋषि को वैदिक साहित्य से मार्गदर्शन मिलना स्वाभाविक है। यही कारण है कि गत वर्ष दिसंबर में जब हाउस ऑफ कॉमन्स (संसद) के नए सदस्य बतौर सांसद शपथ ले रहे थे, तब ऋषि के साथ ब्रितानी मंत्रिमंडल के एक और भारतीय मूल के सदस्य आलोक शर्मा ने ईसाइयों के पवित्रग्रंथ बाइबल के बजाय भगवद् गीता की प्रति हाथ में रखकर शपथ ली थी। रिचमंड (यॉर्क) सीट से लगातार तीसरी बार सांसद निर्वाचित होने वाले ऋषि 2017 में भी भगवद् गीता को साक्षी मानकर शपथ ले चुके है। प्रीति पटेल की पृष्ठभूमि भी लगभग ऋषि जैसे ही है। इंग्लैंड में जन्मी प्रीति के माता-पिता गुजराती मूल के थे और वह 1960 के दशक में युगांडा से इंग्लैंड आकर बसे थे। ऋषि सुनाक का व्यक्तित्व उनके परिवार-घर के उस "इको-सिस्टम" और संस्कार से जनित है, जिसे प्राणवायु वैदिक सनातन संस्कृति और उसकी बहुलतावादी परंपराओं से तब भी मिल रही है, जब उनका परिवार दशकों पहले अपनी पैतृक भूमि- भारत से मीलों दूर हो गया था। 1960 के दशक में ब्रिटेन जाने से पहले सुनाक का परिवार पूर्वी अफ्रीका में बसा हुआ था। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत से दूर रहने के बाद भी सुनाक का परिवार अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ा रहा। इस पृष्ठभूमि में भारत की स्थिति विडंबना से भरी हुई है। यहां वामपंथियों के कुटिल षड़यंत्र ने भारतीय समाज के एक वर्ग को न केवल अपनी वास्तविक जड़ों से दूर कर दिया है, अपितु उसके व्यवहार में अपनी मूल संस्कृति प्रति नफरत की भावना भी घोल दी है। क्या यह सत्य नहीं कि इस संबंध में भारतीय समाज के उसी वर्ग को विदेशों में बसे भारतीय प्रवासियों से सीखने की आवश्यकता है? बात केवल ब्रिटेन तक सीमित नहीं है। गत वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए जो प्रत्याक्षी खड़े हुए थे, उनमें भारतीय मूल की सुश्री तुलसी गबार्ड भी प्रमुख थी। अमेरिकी राज्य हवाई से डेमोक्रेट सांसद तुलसी अमेरिकी संसद में पहुंचने वाली पहली हिंदू हैं, जिन्होंने भगवतगीता को साक्षी मानकर शपथ ली थी। यही नहीं, अमृतसर स्थित सिख परिवार में जन्मीं निक्की हेली (निम्रत निक्की रंधावा) को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की ओर से संयुक्त राष्ट्र का राजदूत नियुक्त किया था। वे ऐसी किसी भी उपलब्धि को प्राप्त करने वाली पहली भारतीय मूल की महिला थी। विश्व के सबसे धनी व्यक्तियों में कौन भारतीय सबसे ऊपर है- इसके उत्तर- मुकेश अंबानी से अधिकांश पाठक अवगत होंगे। बहुराष्ट्रीय कार निर्माता जगुआर लैंड रोवर का स्वामित्व वर्ष 2008 से भारतीय उद्योगपति रतन टाटा की कंपनी टाटा मोटर्स के पास है। विश्व में सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक कंपनी आर्सेलर मित्तल का संचालन लक्ष्मीनिवास मित्तल कर रहे है। इस प्रकार की बहुत लंबी सूची है। भारत में जनित बहुलतावादी और समावेशी संस्कृति हमारी यूएसपी है। यह एक ऐसी सॉफ्ट पावर है, जिसने सदियों से पूरे विश्व का मार्गदर्शन किया है। हमारे प्रभाव का विस्तार कभी तलवार के बल पर नहीं हुआ है। 8वीं शताब्दी में विश्व के इस भूखंड पर इस्लामी आक्रांताओं के आगमन से पहले तक, भारतीय सांस्कृतिक विरासत अफगानिस्तान से लेकर म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया आदि सुदूर पश्चिमी एशिया तक फैला हुआ था। कोई आश्चर्य नहीं कि उसी संस्कृति के वाहकों का परचम आज दुनिया के अलग-अलग कोने पर शान के साथ लहरा रहा है। ब्रिटेन में भारतवंशी प्रीति पटेल का गृह मंत्री होना और ऋषि सुनाक का वित्त मंत्रालय संभालना- इसका एक और सबसे बड़ा मूर्त रूप है।